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जब से है वो रौनक़-ए-महफ़िल आँखों में | शाही शायरी
jab se hai wo raunaq-e-mahfil aankhon mein

ग़ज़ल

जब से है वो रौनक़-ए-महफ़िल आँखों में

अज़ीम मुर्तज़ा

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जब से है वो रौनक़-ए-महफ़िल आँखों में
जान लबों पर रहती है दिल आँखों में

सूख रही है जू-ए-गिर्या-ए-गर्द-निशाँ
चुभने लगी है अब ख़ाक-ए-दिल आँखों में

हिज्र की रातें अर्सा-ए-बे-ख़्वाबी का सफ़र
काट रहा हूँ मंज़िल मंज़िल आँखों में

ख़ून की लहरें मोती मोती पलकों पर
निकला दिल-दरिया का साहिल आँखों में

देख रहा हूँ गुज़रे वक़्त की तस्वीरें
उतरे हैं यादों के महमिल आँखों में