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जब से है बाद-ए-ख़िज़ाँ सरसर-ए-ग़म आवारा | शाही शायरी
jab se hai baad-e-KHizan sarsar-e-gham aawara

ग़ज़ल

जब से है बाद-ए-ख़िज़ाँ सरसर-ए-ग़म आवारा

अदीब सुहैल

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जब से है बाद-ए-ख़िज़ाँ सरसर-ए-ग़म आवारा
ख़ुश्क पत्तों की तरह रहते हैं हम आवारा

कुछ तो है बात कि है मौसम-ए-गुल के बा-वस्फ़
बू-ए-गुल बू-ए-सबा बू-ए-सनम आवारा

कुंज-दर-कुंज सितम-ख़ुर्दा ग़ज़ालों को अभी
ता-ब-कै रक्खेगी ये लज़्ज़त-ए-रम आवारा

हजला-ए-संग-ए-सर-ए-रह में न जाने कितने
रू-नुमाई को हैं बेताब सनम आवारा

है ग़म-ए-ज़ीस्त का या सोज़-ए-मोहब्बत का सिला
आरिज़-ए-गुल पे जो है गौहर-ए-नम आवारा

रंग-ए-आरिज़ को तमाज़त से बचाने के लिए
रुख़ पे लहराया हुआ अब्र-ए-करम आवारा