जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से जी को बहलाया
कभी अपने ही दिल से बातें कीं कभी तेरी याद को समझाया
यूँही वक़्त गँवाया मोती सा यूँही उम्र गँवाई सोना सी
सच कहते हो तुम हम-सुख़नो इस इश्क़ में हम ने क्या पाया
जब पहले-पहल तुझे देखा था दिल कितने ज़ोर से धड़का था
वो लहर न फिर दिल में जागी वो वक़्त न लौट के फिर आया
फिर आज तिरे दरवाज़े पर बड़ी देर के बा'द गया था मगर
इक बात अचानक याद आई मैं बाहर ही से लौट आया
ग़ज़ल
जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से जी को बहलाया
नासिर काज़मी