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जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते | शाही शायरी
jab pyar nahin hai to bhula kyun nahin dete

ग़ज़ल

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते

हसरत जयपुरी

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जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते
ख़त किस लिए रक्खे हैं जला क्यूँ नहीं देते

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते

लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यूँ नहीं देते

रह रह के न तड़पाओ ऐ बे-दर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यूँ नहीं देते

जब उस की वफ़ाओं पे यक़ीं तुम को नहीं है
'हसरत' को निगाहों से गिरा क्यूँ नहीं देते