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जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है | शाही शायरी
jab pursish-e-haal wo farmate hain jaaniye kya ho jata hai

ग़ज़ल

जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है

फ़ानी बदायुनी

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जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
कुछ यूँ भी ज़बाँ नहीं खुलती कुछ दर्द सिवा हो जाता है

अब ख़ैर से उन की बज़्म का इतना रंग तो बदला मेरे बा'द
जब नाम मिरा आ जाता है कुछ ज़िक्र-ए-वफ़ा हो जाता है

यकता-ए-ज़माना होने पर साहब ये ग़ुरूर ख़ुदाई का
सब कुछ हो मगर ख़ाकम-ब-दहन क्या कोई ख़ुदा हो जाता है

क़तरा क़तरा रहता है दरिया से जुदा रह सकने तक
जो ताब-ए-जुदाई ला न सके वो क़तरा फ़ना हो जाता है

फिर दिल से 'फ़ानी' सारे के सारे नक़्श-ए-जफ़ा मिट जाते हैं
जिस वक़्त वो ज़ालिम सामने आ कर जान-ए-हया हो जाता है