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जब फैल के वीरानों से वीराने मिलेंगे | शाही शायरी
jab phail ke viranon se virane milenge

ग़ज़ल

जब फैल के वीरानों से वीराने मिलेंगे

एज़ाज़ अफ़ज़ल

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जब फैल के वीरानों से वीराने मिलेंगे
दिल खोल के दीवानों से दीवाने मिलेंगे

ऐ कू-ए-ख़मोशी की तरफ़ भागने वालो
हर गाम पे अफ़्साने ही अफ़्साने मिलेंगे

ज़ंजीर लिए हाथों में कुछ सोच रहे हैं
ज़िंदाँ में बहुत ऐसे भी दीवाने मिलेंगे

जो गर्मी-ए-महफ़िल से जला लेते हैं शमएँ
परवानों में कुछ ऐसे भी परवाने मिलेंगे

हाँ देख ज़रा फैल के ऐ तिश्नगी-ए-शौक़
हर जाम में सिमटे हुए मय-ख़ाने मिलेंगे