जब फैल के वीरानों से वीराने मिलेंगे
दिल खोल के दीवानों से दीवाने मिलेंगे
ऐ कू-ए-ख़मोशी की तरफ़ भागने वालो
हर गाम पे अफ़्साने ही अफ़्साने मिलेंगे
ज़ंजीर लिए हाथों में कुछ सोच रहे हैं
ज़िंदाँ में बहुत ऐसे भी दीवाने मिलेंगे
जो गर्मी-ए-महफ़िल से जला लेते हैं शमएँ
परवानों में कुछ ऐसे भी परवाने मिलेंगे
हाँ देख ज़रा फैल के ऐ तिश्नगी-ए-शौक़
हर जाम में सिमटे हुए मय-ख़ाने मिलेंगे
ग़ज़ल
जब फैल के वीरानों से वीराने मिलेंगे
एज़ाज़ अफ़ज़ल