जब कोई मेहरबान होता है
दिल बहुत ख़ुश-गुमान होता है
जिस के पैरों तले ज़मीन नहीं
उस का सारा जहान होता है
रास्ता सच का है कठिन प्यारे
हर क़दम इम्तिहान होता है
चीख़ उठती हैं घर की दीवारें
दर्द कब बे-ज़बान होता है
अच्छी लगती है धूप की शिद्दत
सर पे जब साएबान होता है
एक पत्ती भी टूटने से 'मजीद'
ग़म-ज़दा बाग़बान होता है
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ग़ज़ल
जब कोई मेहरबान होता है
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद