जब कि ईधर तिरी निगाह पड़ी
मेरे ही दिल पे मेरी आह पड़ी
बे-तरह कुछ मिरे ही जाता है
दिल पे हालत अजब तबाह पड़ी
तू करे अब निबाह या न करे
अपने ज़िम्मे तो याँ निबाह पड़ी
दम-ब-दम यूँ जो बद-गुमानी है
कुछ तो आशिक़ की तुझ को चाह पड़ी
तेरे कूचे में जाए बिन न रहे
अब तो वाँ की 'असर' को राह पड़ी
ग़ज़ल
जब कि ईधर तिरी निगाह पड़ी
मीर असर