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जब कि ईधर तिरी निगाह पड़ी | शाही शायरी
jab ki idhar teri nigah paDi

ग़ज़ल

जब कि ईधर तिरी निगाह पड़ी

मीर असर

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जब कि ईधर तिरी निगाह पड़ी
मेरे ही दिल पे मेरी आह पड़ी

बे-तरह कुछ मिरे ही जाता है
दिल पे हालत अजब तबाह पड़ी

तू करे अब निबाह या न करे
अपने ज़िम्मे तो याँ निबाह पड़ी

दम-ब-दम यूँ जो बद-गुमानी है
कुछ तो आशिक़ की तुझ को चाह पड़ी

तेरे कूचे में जाए बिन न रहे
अब तो वाँ की 'असर' को राह पड़ी