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जब खुला बादबान हाथों में | शाही शायरी
jab khula baadban hathon mein

ग़ज़ल

जब खुला बादबान हाथों में

नज़ीर क़ैसर

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जब खुला बादबान हाथों में
आ गया आसमान हाथों में

शोला था वो गुलाब था क्या था
पड़ गए हैं निशान हाथों में

गिरते जाते हैं फूल बिस्तर पर
खुलता जाता है थान हाथों में

उस ने हाथों पे होंट क्या रक्खे
आ गई सारी जान हाथों में

फूल क्या क्या खिलाती जाती है
कोई शाख़-ए-गुमान हाथों में

वही रस्ता वही हवा 'क़ैसर'
और वही शम्अ-दान हाथों में