जब कभी हादसात ने मारा
यूँ लगा काएनात ने मारा
वो जो मंसूर की अदा ठहरी
उस को इज़हार-ए-ज़ात ने मारा
लोग दुनिया का ग़म उठाते हैं
हम को छोटी सी बात ने मारा
हम न मुँह फेर कर गुज़र पाए
चंद लम्हों के सात ने मारा
दिन तो कट ही गया था उन का मगर
कम-नसीबों को रात ने मारा
मौत का दम सबा ग़नीमत है
वर्ना पल पल हयात ने मारा
ग़ज़ल
जब कभी हादसात ने मारा
सबीहा सबा