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जब कभी हादसात ने मारा | शाही शायरी
jab kabhi hadsat ne mara

ग़ज़ल

जब कभी हादसात ने मारा

सबीहा सबा

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जब कभी हादसात ने मारा
यूँ लगा काएनात ने मारा

वो जो मंसूर की अदा ठहरी
उस को इज़हार-ए-ज़ात ने मारा

लोग दुनिया का ग़म उठाते हैं
हम को छोटी सी बात ने मारा

हम न मुँह फेर कर गुज़र पाए
चंद लम्हों के सात ने मारा

दिन तो कट ही गया था उन का मगर
कम-नसीबों को रात ने मारा

मौत का दम सबा ग़नीमत है
वर्ना पल पल हयात ने मारा