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जब जब रफ़ाक़तों से गुज़रना पड़ा मुझे | शाही शायरी
jab jab rafaqaton se guzarna paDa mujhe

ग़ज़ल

जब जब रफ़ाक़तों से गुज़रना पड़ा मुझे

रहबर जौनपूरी

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जब जब रफ़ाक़तों से गुज़रना पड़ा मुझे
पुर-ख़ार वादियों में उतरना पड़ा मुझे

अहद-ए-तग़य्युरात में जीने के नाम पर
अपनी रिवायतों से मुकरना पड़ा मुझे

दरिया के शोर-ओ-शर से में ख़ाइफ़ न था मगर
साहिल के इंतिशार से डरना पड़ा मुझे

बचपन के सब नुक़ूश निगाहों में फिर गए
कुछ दिन जो अपने गाँव ठहरना पड़ा मुझे

इक लम्हा-ए-हयात की तज़ईन के लिए
सदियों सिमट सिमट के बिखरना पड़ा मुझे

उस मंज़िल-फ़रेब से गुज़रा हूँ मैं जहाँ
अपना भी ए'तिबार न करना पड़ा मुझे