EN اردو
जब हुए तुम चमन में आन खड़े | शाही शायरी
jab hue tum chaman mein aan khaDe

ग़ज़ल

जब हुए तुम चमन में आन खड़े

जोशिश अज़ीमाबादी

;

जब हुए तुम चमन में आन खड़े
वोहीं हो गए गुलों के कान खड़े

शुक्र-ए-ग़म है कि दिल के मैदाँ में
आह ओ नाले के हैं निशान खड़े

बैठने की नहीं रही ताक़त
होवें क्या हम से ना-तवान खड़े

उस तलक बाल-ए-शौक़ ले पहुँचा
रह गए दर पे दारबान खड़े

उस के तीर-ए-निगाह की दौलत
हैं दर-ए-दिल पे मेहमान खड़े

बे-सबब हम से रूठे जाते हो
सुन लो टुक हो के मेहरबान खड़े

दीन ओ ईमान ओ जान देने को
हम तो हैं रू-ब-रू हर आन खड़े

आज वो इम्तिहान ले 'जोशिश'
हम भी हैं बहर-ए-इम्तिहान खड़े