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जब दिल ही नहीं है पहलू में फिर इश्क़ का सौदा कौन करे | शाही शायरी
jab dil hi nahin hai pahlu mein phir ishq ka sauda kaun kare

ग़ज़ल

जब दिल ही नहीं है पहलू में फिर इश्क़ का सौदा कौन करे

अमजद नजमी

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जब दिल ही नहीं है पहलू में फिर इश्क़ का सौदा कौन करे
अब उन से मोहब्बत कौन करे अब उन की तमन्ना कौन करे

अब हिज्र के सदमे सहने को पत्थर का कलेजा कौन करे
इन लम्बी लम्बी रातों का मर मर के सवेरा कौन करे

हम रस्म-ए-वफ़ा को मानते हैं आदाब-ए-मोहब्बत जानते हैं
हम बात की तह पहचानते हैं फिर आप को रुस्वा कौन करे

ऐ जज़्बा-ए-उल्फ़त तू ही बता कुछ हद भी है इस नाकामी की
मायूस निगाहों से उन का महफ़िल में नज़ारा कौन करे

हम देख चुके हाँ देख चुके दस्तूर तुम्हारी महफ़िल का
जब शुक्र पे ये पाबंदी है फिर जुरअत-ए-शिकवा कौन करे