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जब दर्द मोहब्बत का मिरे पास नहीं था | शाही शायरी
jab dard mohabbat ka mere pas nahin tha

ग़ज़ल

जब दर्द मोहब्बत का मिरे पास नहीं था

नक़्श लायलपुरी

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जब दर्द मोहब्बत का मिरे पास नहीं था
मैं कौन हूँ क्या हूँ मुझे एहसास नहीं था

टूटा मिरा हर ख़्वाब हुआ जब से जुदा वो
इतना तो कभी दिल मिरा बे-आस नहीं था

आया जो मिरे पास मिरे होंट भिगोने
वो रेत का दरिया था मिरी प्यास नहीं था

बैठा हूँ मैं तन्हाई को सीने से लगा के
इस हाल में जीना तो मुझे रास नहीं था

कब जान सका दर्द मिरा देखने वाला
चेहरा मिरे हालात का अक्कास नहीं था

क्यूँ ज़हर बना उस का तबस्सुम मेरे हक़ में
ऐ 'नक़्श' वो इक दोस्त था अल्मास नहीं था