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जब भी उस शख़्स को देखा जाए | शाही शायरी
jab bhi us shaKHs ko dekha jae

ग़ज़ल

जब भी उस शख़्स को देखा जाए

अमजद इस्लाम अमजद

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जब भी उस शख़्स को देखा जाए
कुछ कहा जाए न सोचा जाए

दीदा-ए-कोर है क़र्या क़र्या
आइना किस को दिखाया जाए

दामन-ए-अहद-ए-वफ़ा क्या था मैं
दिल ही हाथों से जो निकला जाए

दर्द-मंदों से तग़ाफ़ुल कब तक
उस को एहसास दिलाया जाए

क्या वो इतना ही हसीं लगता है
इस को नज़दीक से देखा जाए

वो कभी सुर है कभी रंग 'अमजद'
उस को किस नाम से ढूँडा जाए