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जब भी पेड़ों पे समर जागता है | शाही शायरी
jab bhi peDon pe samar jagta hai

ग़ज़ल

जब भी पेड़ों पे समर जागता है

उमर फ़रहत

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जब भी पेड़ों पे समर जागता है
दिल में तूफ़ान का डर जागता है

सुब्ह होते ही बुझे सारे चराग़
इक सितारा सा मगर जागता है

ख़ाक हो जाता है ये दस्त-ए-दुआ'
तब दुआओं में असर जागता है

शहर में शोर है ना-बीनों का
क्या कोई अहल-ए-नज़र जागता है

लौट जाऊँगा कि मेरी ख़ातिर
दश्त में एक शजर जागता है