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जब भी मुझ को अपना बचपन याद आता है | शाही शायरी
jab bhi mujhko apna bachpan yaad aata hai

ग़ज़ल

जब भी मुझ को अपना बचपन याद आता है

क़ैसर सिद्दीक़ी

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जब भी मुझ को अपना बचपन याद आता है
बचपन के इक प्यार का बचपन याद आता है

देख के इस मुँह-ज़ोर जवानी की मुँह-ज़ोरी
मुझ को इस का तोतला बचपन याद आता है

औरत माँ थी बहन थी दादी थी नानी थी
कोरे काग़ज़ जैसा बचपन याद आता है

तूफ़ानी बारिश घर में सैलाब का आलम
ठंडा चूल्हा भूका बचपन याद आता है

तन्हाई का दुख तो कम हो किसी बहाने
देखें किस का किस का बचपन याद आता है

शहद के जैसी मीठी बोली याद आती है
दूध के जैसा उजला बचपन याद आता है

बचपन के यारों से मिलता रहता हूँ मैं
'क़ैसर' मुझ को सब का बचपन याद आता है