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जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया | शाही शायरी
jab bhi hansi ki gard mein chehra chhupa liya

ग़ज़ल

जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया

असलम कोलसरी

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जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया
बे-लौस दोस्ती का बड़ा ही मज़ा लिया

इक लम्हा-ए-सुकूँ तो मिला था नसीब से
लेकिन किसी शरीर सदी ने चुरा लिया

काँटे से भी निचोड़ ली ग़ैरों ने बू-ए-गुल
यारों ने बू-ए-गुल से भी काँटा बना लिया

'असलम' बड़े वक़ार से डिग्री वसूल की
और इस के बा'द शहर में ख़्वांचा लगा लिया