जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया
बे-लौस दोस्ती का बड़ा ही मज़ा लिया
इक लम्हा-ए-सुकूँ तो मिला था नसीब से
लेकिन किसी शरीर सदी ने चुरा लिया
काँटे से भी निचोड़ ली ग़ैरों ने बू-ए-गुल
यारों ने बू-ए-गुल से भी काँटा बना लिया
'असलम' बड़े वक़ार से डिग्री वसूल की
और इस के बा'द शहर में ख़्वांचा लगा लिया
ग़ज़ल
जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया
असलम कोलसरी