जब भी बादल बारिश लाए शौक़-जज़ीरों से
ख़ोशा ख़ोशा हर्फ़ की बेलें भर गईं हीरों से
तुम से मिले तो शहर-ए-तमन्ना कितना फैल गया
क्या क्या ख़्वाब नए तामीर हुए ताबीरों से
आँखें रंगों की बरसातें तक तक झील हुईं
दिल ने क्या क्या अक्स कशीद किए तस्वीरों से
उस को छूने की ख़्वाहिश ने हाथ बढ़ाए तो
फन फैलाए निकले कितने साँप लकीरों से
'आली' दानिश की बस्ती में अब सरदार वही
ढूँड निकाले कुछ अँधियारे जो तंवीरों से
ग़ज़ल
जब भी बादल बारिश लाए शौक़-जज़ीरों से
जलील ’आली’