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जब भी आती है तिरी याद कभी शाम के बअ'द | शाही शायरी
jab bhi aati hai teri yaad kabhi sham ke baad

ग़ज़ल

जब भी आती है तिरी याद कभी शाम के बअ'द

कृष्ण अदीब

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जब भी आती है तिरी याद कभी शाम के बअ'द
और बढ़ जाती है अफ़्सुर्दा-दिली शाम के बअ'द

अब इरादों पे भरोसा है न तौबा पे यक़ीं
मुझ को ले जाए कहाँ तिश्ना-लबी शाम के बअ'द

यूँ तो हर लम्हा तिरी याद का बोझल गुज़रा
दिल को महसूस हुई तेरी कमी शाम के बअ'द

यूँ तो कुछ शाम से पहले भी उदासी थी 'अदीब'
अब तो कुछ और बढ़ी दिल की लगी शाम के बअ'द