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जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा | शाही शायरी
jab agle sal yahi waqt aa raha hoga

ग़ज़ल

जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा

रियाज़ मजीद

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जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा
ये कौन जानता है कौन किस जगह होगा

तू मेरे सामने बैठा है और मैं सोचता हूँ
कि आए लम्हों में जीना भी इक सज़ा होगा

हम अपने अपने बखेड़ों में फँस चुके होंगे
न तुझ को मेरा न मुझ को तिरा पता होगा

यही जगह जहाँ हम आज मिल के बैठे हैं
इसी जगह पे ख़ुदा जाने कल को क्या होगा

यही चमकते हुए पल धुआँ धुआँ होंगे
यही चमकता हुआ दिल बुझा बुझा होगा

लहू रुलाएगा वो धूप छाँव का मंज़र
नज़र उठाऊँगा जिस सम्त झुटपुटा होगा

बिछड़ने वाले तुझे देख देख सोचता हूँ
तू फिर मिलेगा तो कितना बदल चुका होगा