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जब आप से ही गुज़र गए हम | शाही शायरी
jab aap se hi guzar gae hum

ग़ज़ल

जब आप से ही गुज़र गए हम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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जब आप से ही गुज़र गए हम
फिर किस से कहें किधर गए हम

क्या काबा ओ दैर ओ क्या ख़राबात
तू ही था ग़रज़ जिधर गए हम

आए थे मिसाल-ए-शोला सरगर्म
जाते हुए जूँ शरर गए हम

शबनम की तरह से उस चमन से
होते ही दम-ए-सहर गए हम

कुछ अपने तईं किया न मालूम
क्या आप से बे-ख़बर गए हम

जुज़ हसरत-ए-उम्र-ए-रफ़्ता अफ़्सोस
कुछ आ के यहाँ न कर गए हम

शैख़ी से गुज़र हुए क़लंदर
बिगड़े थे पर अब सँवर गए हम

इस दर्जा हुए ख़राब-ए-उल्फ़त
जी से अपने उतर गए हम

फ़ैज़ उस लब-ए-ईसवी का 'हातिम'
बिल-अकस हुआ कि मर गए हम