जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या
सर फोड़े न ख़ुद से तो ये तन्हाई करे क्या
गुज़री जो इधर से तो घुटन से ये मरेगी
हब्स-ए-दिल-ए-वहशी में ये पुरवाई करे क्या
कहती है जो कहने दो ये दुनिया मुझे क्या है
ज़िंदानी-ए-एहसास में रुस्वाई करे क्या
हर हुस्न ओ अदा धँस गए आईने के अंदर
जब राख हों आँखें तो ये ज़ेबाई करे क्या
वो ज़ख़्म कि हर लम्स नया ज़ख़्म लगे है
बीमारी-ए-इदराक मसीहाई करे क्या
पल भर को ये सौदा-ए-जुनूँ कम नहीं होता
शहरों के तकल्लुफ़ में ये सौदाई करे क्या
ग़ज़ल
जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या
सरवत ज़ेहरा