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जाऊँ मैं उस निगार पर क़ुर्बान | शाही शायरी
jaun main us nigar par qurban

ग़ज़ल

जाऊँ मैं उस निगार पर क़ुर्बान

क़ाज़ी महमूद बेहरी

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जाऊँ मैं उस निगार पर क़ुर्बान
उस सलोने सिंगार पर क़ुर्बान

जिन दिलाँ के दलाँ कूँ दिल भंजन
सर मिरा उस सवार पर क़ुर्बान

जिन धतूरा दे दिल चुराई मिरा
उस दग़ाबाज़ नार पर क़ुर्बान

जग मुंजे बोलता कि तू ज्ञानी
की हुआ उस गंवार पर क़ुर्बान

मुंझ से आशिक़ कूँ बुल-हवस कहते
इश्क़ के कारोबार पर क़ुर्बान

दिल-बराँ की तो दोस्ती मा'लूम
आशिक़ाँ के क़रार पर क़ुर्बान

यक बला दूर दूसरी बन का
'बहरी' अपनी बहार पर क़ुर्बान