जाती रहीं किधर वो मोहब्बत की बानियाँ
इक आश्ना रहीं तिरी बातें बगानियाँ
सुन कर जला हूँ तूर सा मूसा कमर मियाँ
फ़िरऔनी-ए-रक़ीब ओ तिरी लन-तरानियाँ
कहता हूँ जब मैं सोते नसीबों की सरगुज़िश्त
होती हैं ख़्वाब-ए-नाज़ की तुम को कहानियाँ
जाम-ए-हुबाब पर दम-ए-ईसा भी संग है
नाज़ुक दिलों पे हल्के सुख़न हैं गिरानियाँ
ऐ जग के ठग ये नाम निकाले से नंग नहीं
'उज़लत' से दिल लिए पे भी आँखें चोरानियाँ
ग़ज़ल
जाती रहीं किधर वो मोहब्बत की बानियाँ
वली उज़लत