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जाते कहाँ जुनून के तूफ़ाँ में आ गए | शाही शायरी
jate kahan junun ke tufan mein aa gae

ग़ज़ल

जाते कहाँ जुनून के तूफ़ाँ में आ गए

शाकिर इनायती

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जाते कहाँ जुनून के तूफ़ाँ में आ गए
आख़िर को चारागर मिरे ज़िंदाँ में आ गए

वो शोर-ओ-गुल वो शहर का तूफ़ान-ए-ज़िंदगी
अच्छे रहे वही जो बयाबाँ में आ गए

वो उन की सैर-ए-बाग़ वो ज़ौक़-ए-बहार-ए-नाज़
फूल आप टूट टूट के दामाँ में आ गए

उस गुल की आरज़ू में ख़लिश इस क़दर है क्यूँ
काँटे कहाँ से हसरत-ओ-अरमाँ में आ गए

जो घर बचे-बचाए थे तूफ़ान-ए-आह से
वो इंतिज़ाम-ए-दीद-ए-गिरियाँ में आ गए

शायाँ तुम्हारी शान के ये ज़िंदगी नहीं
तुम क्यूँ हमारे ख़्वाब-ए-परेशाँ में आ गए

है अहल-ए-बज़्म ये भी इक अंदाज़-ए-नाज़-ए-हुस्न
आँसू कहाँ से शम-ए-फ़रोज़ाँ में आ गए

'शाकिर' नहीं है रब्त जिन्हें सब्र ओ शुक्र से
हैवाँ है वो जो सूरत-ए-इन्साँ में आ गए