जाते हुए निगाह इधर कर के देख लो
हम लोग फिर कहाँ हमें जी-भर के देख लो
देता है अब यही दिल-ए-शोरीदा मशवरा
जीने से तंग हो तो मियाँ मर के देख लो
रहने का दश्त में भी सलीक़ा नहीं गया
याँ भी क़रीने सारे मिरे घर के देख लो
शाहान-ए-कज-कुलाह ज़मीं-बोस हो गए
तेवर मगर वही हैं मिरे सर के देख लो
सज्दे में दो-जहान हैं ऐ 'दिल' हमारे साथ
रुत्बे ये आस्तान क़लंदर के देख लो
ग़ज़ल
जाते हुए निगाह इधर कर के देख लो
दिल अय्यूबी