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जारी तो हो सब के लिए फ़रमान-ए-मोहब्बत | शाही शायरी
jari to ho sab ke liye farman-e-mohabbat

ग़ज़ल

जारी तो हो सब के लिए फ़रमान-ए-मोहब्बत

फ़ैय्याज़ रश्क़

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जारी तो हो सब के लिए फ़रमान-ए-मोहब्बत
कर दीजिए दिल से ज़रा ऐलान-ए-मोहब्बत

इस शख़्स को दुख-दर्द सताता भी नहीं है
जिस दिल में रहा करता है ईमान-ए-मोहब्बत

आँखों से बदन से तिरी ज़ुल्फ़ों की महक से
करता हूँ मैं दिन-रात ही ऐ जान-ए-मोहब्बत

क्या कीजिए मेरा न हुआ जिस के लिए मैं
करता रहा हर मोड़ पे सामान-ए-मोहब्बत

कुछ भी नहीं बेहतर है ज़माने में कहीं पर
दुनिया में नहीं कुछ भी है शायान-ए-मोहब्बत

मुश्किल हैं बहुत रास्ते नफ़रत के ऐ भाई
हम सब के लिए सब से है आसान मोहब्बत

उन के लिए दुनिया भी वसीअ' होती है 'फ़य्याज़'
होता है वसीअ' जिन का भी दामान-ए-मोहब्बत