जाओ मातम गुज़ारो जाने दो
जिस का ग़म है उसे मनाने दो
बीच से एक दास्ताँ टूटी
और फिर बन गए फ़साने दो
हम फ़क़ीरों को कुछ तो दो साहब
कुछ नहीं दे सको तो ता'ने दो
हाथ जिस को लगा नहीं सकता
उस को आवाज़ तो लगाने दो
तुम दिया हो तो उन पतंगों को
कम से कम रौशनी में आने दो
ग़ज़ल
जाओ मातम गुज़ारो जाने दो
अम्मार इक़बाल