जानता उस को हूँ दवा की तरह
चाहता उस को हूँ शिफ़ा की तरह
है दहन ग़ाएब और कमर अन्क़ा
ख़ुद भी नायाब हो हुमा की तरह
चाल ने तेरी फ़ित्ना-ए-महशर
पीस डाला मुझे हिना की तरह
ख़ाक छानी बहुत पता न मिला
वो है नायाब कीमिया की तरह
इस क़दर ना-तवाँ 'हक़ीर' हैं हम
हिल नहीं सकते नक़्श-ए-पा की तरह
ग़ज़ल
जानता उस को हूँ दवा की तरह
हक़ीर