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जानता उस को हूँ दवा की तरह | शाही शायरी
jaanta usko hun dawa ki tarah

ग़ज़ल

जानता उस को हूँ दवा की तरह

हक़ीर

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जानता उस को हूँ दवा की तरह
चाहता उस को हूँ शिफ़ा की तरह

है दहन ग़ाएब और कमर अन्क़ा
ख़ुद भी नायाब हो हुमा की तरह

चाल ने तेरी फ़ित्ना-ए-महशर
पीस डाला मुझे हिना की तरह

ख़ाक छानी बहुत पता न मिला
वो है नायाब कीमिया की तरह

इस क़दर ना-तवाँ 'हक़ीर' हैं हम
हिल नहीं सकते नक़्श-ए-पा की तरह