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जानने के लिए बेताब था अग़्यार का हाल | शाही शायरी
jaanne ke liye betab tha aghyar ka haal

ग़ज़ल

जानने के लिए बेताब था अग़्यार का हाल

मोहम्मद आबिद अली आबिद

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जानने के लिए बेताब था अग़्यार का हाल
उस ने पूछा न हमारे दिल-ए-बीमार का हाल

शम्अ' भी जलने पे आमादा थी परवाना भी
एक जैसा ही था मतलूब-ओ-तलबगार का हाल

सोगवारी में हमारी थे बराबर के शरीक
हम से मिलता था हमारे दर-ओ-दीवार का हाल

सर्व-ए-तिमसाल है क़ामत में शबाहत में गुलाब
क्या बयाँ सामने उस के करें गुलज़ार का हाल

उस तरफ़ जो भी गया लौट के आया न कभी
पूछिए किस से मक़ाम-ए-रसन-ओ-दार का हाल

सब ने दिल थाम लिया देख के उस को 'आबिद'
एक ही जैसा हुआ काफ़िर-ओ-दींदार का हाल