जानें मुश्ताक़ों की लब पर आइयाँ
बलबे ज़ालिम तेरी बे-परवाइयाँ
जेब तो क्या नासेहा दामन की भी
धज्जियाँ कर इश्क़ ने दिखलाइयाँ
इस समन-अंदाज़ गुल-रुख़्सार की
जाँ-फ़ज़ा निकहत चुरा कर लाइयाँ
सुन के ये बाद-ए-सबा ने बाग़ में
गठरियाँ ग़ुंचों की सब खुलवाइयाँ
देखते ही उस को शैदा हो गया
क्या हुईं 'बेदार' वे दानाइयाँ
ग़ज़ल
जानें मुश्ताक़ों की लब पर आइयाँ
मीर मोहम्मदी बेदार