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जाने वालों से राब्ता रखना | शाही शायरी
jaane walon se rabta rakhna

ग़ज़ल

जाने वालों से राब्ता रखना

निदा फ़ाज़ली

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जाने वालों से राब्ता रखना
दोस्तो रस्म-ए-फ़ातिहा रखना

घर की ता'मीर चाहे जैसी हो
उस में रोने की कुछ जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिए
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना

जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तन्हाइयाँ बचा रखना

मिलना-जुलना जहाँ ज़रूरी है
मिलने-जुलने का हौसला रखना

उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस जगह पता रखना