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जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में | शाही शायरी
jaane tu kya DhunDh raha hai basti mein virane mein

ग़ज़ल

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में

इब्न-ए-इंशा

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जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में

जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में

महफ़िल में उस शख़्स के होते कैफ़ कहाँ से आता है
पैमाने से आँखों में या आँखों से पैमाने में

किस का किस का हाल सुनाया तू ने ऐ अफ़्साना-गो
हम ने एक तुझी को ढूँडा इस सारे अफ़्साने में

इस बस्ती में इतने घर थे इतने चेहरे इतने लोग
और किसी के दर पे न पहुँचा ऐसा होश दिवाने में