जाने लगे हैं अब दम-ए-सर्द आसमाँ तलक
ठंडी सड़क बनी है यहाँ से वहाँ तलक
जलते हैं ग़म से जान-ओ-दिल-ओ-सीना-ओ-जिगर
चारों तरफ़ है आग बुझाऊँ कहाँ तलक
बीमार हो गया हूँ मैं क़हत-ए-शराब से
लिल्लाह ले चलो मुझे पीर-ए-मुग़ाँ तलक
मस्जिद से दूर है ये दुकाँ मय-फ़रोश की
आती नहीं है कान में बांग-ए-अज़ाँ तलक
निकला जो दम तो राहत-ओ-आराम है 'असीर'
आवारगी है जिस्म की रूह-ए-रवाँ तलक
ग़ज़ल
जाने लगे हैं अब दम-ए-सर्द आसमाँ तलक
असीर लखनवी