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जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर | शाही शायरी
jaane kyun ghar mein mere dasht-o-bayaban chhoD kar

ग़ज़ल

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

इक़बाल साजिद

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जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर
बैठती हैं बे-सर-ओ-सामानियाँ सर जोड़ कर

कितनी नज़रें कितनी आसें कितनी आवाज़ें यहाँ
लौट जाती हैं दर-ओ-दीवार से सर फोड़ कर

जाने किस की खोज में पैहम बगूले आज कल
फिर रहे हैं शहर की गलियों में सहरा छोड़ कर

मुझ पे पत्थर फेंकने वालों को तेरे शहर में
नर्म-ओ-नाज़ुक हाथ भी देते हैं पत्थर तोड़ कर

बस रहा हूँ आज उस माहौल में 'साजिद' जहाँ
लोग बारातों में जाते हैं जनाज़े छोड़ कर