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जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं | शाही शायरी
jaane kya soch ke hum tujhse wafa karte hain

ग़ज़ल

जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं

कैलाश माहिर

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जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं
क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं

क्या हुआ जाम उठाते ही भर आईं आँखें
ऐसे तूफ़ान तो हर शाम उठा करते हैं

दिल के ज़ख़्मों पे न जाओ कि बड़ी मुद्दत से
ये दिए यूँही सर-ए-शाम जला करते हैं

कौन है जिस का मुक़द्दर न बनी तन्हाई
क्या हुआ हम भी अगर तुझ से गिला करते हैं

रिश्ता-ए-दर्द की मीरास मिली है हम को
हम तिरे नाम पे जीने की ख़ता करते हैं