EN اردو
जाने कितनी उड़ान बाक़ी है | शाही शायरी
jaane kitni uDan baqi hai

ग़ज़ल

जाने कितनी उड़ान बाक़ी है

राजेश रेड्डी

;

जाने कितनी उड़ान बाक़ी है
इस परिंदे में जान बाक़ी है

जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है

अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिस में अम्न-ओ-अमान बाक़ी है

इम्तिहाँ से गुज़र के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाक़ी है

सर क़लम होंगे कल यहाँ उन के
जिन के मुँह में ज़बान बाक़ी है