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जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है | शाही शायरी
jaane kis waste dil chashm-e-karam mange hai

ग़ज़ल

जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है

रईस अख़तर

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जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है
ज़िंदगी आप से फिर दीदा-ए-नम माँगे है

हम कहाँ जाएँगे अब तेरी गली से उठ कर
किस का दिल है जो यहाँ दैर-ओ-हरम माँगे है

मुझ को फूलों की हवस है न तो मोती की तलाश
कासा-ए-चश्म मिरा दस्त-ए-करम माँगे है

चश्म-ए-नम को किसी दामन की तमन्ना ही सही
दिल-ए-बेताब मगर आप का ग़म माँगे है

जाने किस वास्ते इक शख़्स की बहकी हुई चाल
हर-क़दम आप के ही नक़्श-ए-क़दम माँगे है

कोई दीवाना तमन्नाओं को ज़ख़्मी पा कर
ज़िंदगी-भर के लिए रंज-ओ-अलम माँगे है

आइना-ख़ानों की यक-रंगी से उक्ता के 'रईस'
आज़र-ए-वक़्त भी पत्थर के सनम माँगे है