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जाने किस मोड़ जुदाई की घड़ी आती है | शाही शायरी
jaane kis moD judai ki ghaDi aati hai

ग़ज़ल

जाने किस मोड़ जुदाई की घड़ी आती है

नोमान फ़ारूक़

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जाने किस मोड़ जुदाई की घड़ी आती है
हिज्र की बेल मुंडेरों पे चढ़ी आती है

क्या ख़बर धूप की आदत को बिगाड़ा किस ने
बिन-बुलाए मेरे आँगन में चली आती है

हिज्र में वस्ल की बाबत नहीं सोचा करते
ऐसा करने से मोहब्बत में कमी आती है

जाने क्यूँ वस्ल का मौसम नहीं आने देता
जाने क्या उस के ख़ज़ाने में कमी आती है

दर्द का कोई तो रिश्ता है क़लम से 'नोमान'
कुछ भी लिखता हूँ तो आँखों में नमी आती है