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जाने किस बात से दुखा है बहुत | शाही शायरी
jaane kis baat se dukha hai bahut

ग़ज़ल

जाने किस बात से दुखा है बहुत

आलोक मिश्रा

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जाने किस बात से दुखा है बहुत
दिल कई रोज़ से ख़फ़ा है बहुत

सब सितारे दिलासा देते हैं
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत

फिर वही रात मुझ में ठहरी है
फिर समाअत में शोर सा है बहुत

तुम ज़माने की बात करते हो
मेरा मुझ से भी फ़ासला है बहुत

उस की दुखती नसें न फट जाएँ
दिल मुसलसल ये सोचता है बहुत

वास्ता कुछ ज़रूर है तुम से
तुम को वो शख़्स पूछता है बहुत

तुम से बिछड़ा तो टूट जाएगा
उस की आँखों में हौसला है बहुत

चख के देखो इसे कभी तुम भी
इस उदासी में ज़ाइक़ा है बहुत

इन की साँसें गिनी-चुनी हैं बस
ख़ून लम्हों का बह गया है बहुत

दश्त को कर लिया था घर मैं ने
अब मुझे घर ये काटता है बहुत

इस से बाहर निकल न पाओगे
दश्त माज़ी का ये घना है बहुत

मेरा सुख दुख समझती हैं ग़ज़लें
ज़िंदगी को ये आसरा है बहुत