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जाने कहाँ गया है वो वो जो अभी यहाँ था | शाही शायरी
jaane kahan gaya hai wo wo jo abhi yahan tha

ग़ज़ल

जाने कहाँ गया है वो वो जो अभी यहाँ था

जौन एलिया

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जाने कहाँ गया है वो वो जो अभी यहाँ था
वो जो अभी यहाँ था वो कौन था कहाँ था

ता-लम्हा-ए-गुज़िश्ता ये जिस्म और साए
ज़िंदा थे राएगाँ में जो कुछ था राएगाँ था

अब जिस की दीद का है सौदा हमारे सर में
वो अपनी ही नज़र में अपना ही इक समाँ था

क्या क्या न ख़ून थूका मैं उस गली में यारो
सच जानना वहाँ तो जो फ़न था राएगाँ था

ये वार कर गया है पहलू से कौन मुझ पर
था मैं ही दाएँ बाएँ और मैं ही दरमियाँ था

उस शहर की हिफ़ाज़त करनी थी हम को जिस में
आँधी की थीं फ़सीलें और गर्द का मकाँ था

थी इक अजब फ़ज़ा सी इमकान-ए-ख़ाल-ओ-ख़द की
था इक अजब मुसव्विर और वो मिरा गुमाँ था

उम्रें गुज़र गई थीं हम को यक़ीं से बिछड़े
और लम्हा इक गुमाँ का सदियों में बे-अमाँ था

जब डूबता चला मैं तारीकियों की तह में
तह में था इक दरीचा और उस में आसमाँ था