जाने इस में ग़म या ख़ुशी है पहली बार मोहब्बत की है
अपने लिए तो बात नई है पहली बार मोहब्बत की है
किसे बताएँ किस से पूछें क्यूँ ये तड़प हर दम रहती है
कैसे कहें ये ख़ुश-ख़बरी है पहली बार मोहब्बत की है
बे-सुध सा रहता हूँ मैं क्यूँ भूल गया अपनों ग़ैरों को
इक बस उन की याद बची है पहली बार मोहब्बत की है
मिलने पर भी पाबंदी है लोग कहें ये ख़ुद-ग़र्ज़ी है
इस में हमारी क्या ग़लती है पहली बार मोहब्बत की है
सुन रक्खा है बे-शक हम ने लोग नहीं देंगे अब जीने
दुनिया कर ले जो करती है पहली बार मोहब्बत की है
ग़ज़ल
जाने इस में ग़म या ख़ुशी है पहली बार मोहब्बत की है
जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर’