जाना कहाँ है और कहाँ जा रहे हैं हम
अपनों की रहनुमाई से घबरा रहे हैं हम
तुम ने तो इक निगाह उठाई है इस तरफ़
सौ सौ उमीदें बाँध के इतरा रहे हैं हम
नाकाम हो के अपनी सदा लौट आएगी
ये जान कर भी दश्त में चिल्ला रहे हैं हम
सब अपनी अपनी राह पर आगे निकल गए
अब किस का इंतिज़ार किए जा रहे हैं हम
न जाने किस की याद ने ली दिल में गुदगुदी
आइना देख देख के शरमा रहे हैं हम
दुनिया के कारोबार से मतलब नहीं 'मजीद'
दिल को ख़याल-ए-यार से बहला रहे हैं हम
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ग़ज़ल
जाना कहाँ है और कहाँ जा रहे हैं हम
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद