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जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस | शाही शायरी
jaan-fishani ka wan hisab abas

ग़ज़ल

जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

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जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
जो कहो उस का है जवाब अबस

माहताब और कताँ का आलम है
आरिज़-ए-दोस्त पर नक़ाब अबस

क़ुफ़्ल-ए-दर की कलीद ना-पैदा
अब तमन्ना-ए-फत्ह-ए-बाब अबस

ज़ुल्फ़-ए-पुर-ख़म हवा से क्यूँ न हिले
आप खाते हैं पेच-ओ-ताब अबस

ख़त उसे भेजना ज़रूर मगर
दोस्त से ख़्वाहिश-ए-जवाब अबस

मेरे अशआ'र सब बयाज़ी हैं
हम-नशीं फ़िक्र-ए-इंतिख़ाब अबस

है हमारी नज़र में हुरमत-ए-मय
पेचिश-ए-अहल-ए-एहतिसाब अबस

याँ नहीं कुफ्र-ओ-दीन ख़ौफ़-ओ-रजा
लुत्फ़ बे-फ़ाएदा इताब अबस

न सवाब उस में है न इस में असर
सब्र बे-हूदा इज़्तिराब अबस

वा'दा उस ने किया तो क्या 'नाज़िम'
अबस ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब अबस