जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद 
सैर-ए-गुल-ज़ार-ओ-मय-ख़ोरी है याद 
देखता नहिं सुरज कूँ नज़राँ भर 
जिस कूँ तुझ जामा-ए-ज़री है याद 
ख़ूब फूली थी बाग़ में नर्गिस 
गुल-ए-सद-बर्ग-ओ-जाफ़री है याद 
वो चराग़ाँ ओ चाँदनी की रात 
सैर-ए-हत-फूल ओ फुलझड़ी है याद 
वो तमाशा ओ खेल होली का 
सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद 
हो दिवाना जंगल में क्यूँ न फिरे 
जिस को वो साया-ए-परी है याद 
ऐ सियह मस्त मेरी अँखियों की 
लाल बादल की तुझ झुरी है याद 
जब तुमन पास 'फ़ाएज़' आया था 
बात कहना बी सरसरी है याद
        ग़ज़ल
जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद
फ़ाएज़ देहलवी

