जाँ-ब-लब तिश्ना-दहन जाते रहे
साक़ियान-ए-बज़्म-ए-जम आते रहे
इक ग़म-ए-दुश्मन ही दुनिया में न था
और भी ग़म थे जो तड़पाते रहे
दर्द-ए-दिल बढ़ता गया है जिस क़दर
चारा-जूई दोस्त फ़रमाते रहे
ज़ौक़-ए-आज़ादी में जो थे जाँ-ब-लब
ऐसे क़ैदी जान से जाते रहे
ग़ज़ल
जाँ-ब-लब तिश्ना-दहन जाते रहे
इशरत अनवर