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जाम तो जाम मय-ए-होश-रुबा भी बदली | शाही शायरी
jam to jam mai-e-hosh-ruba bhi badli

ग़ज़ल

जाम तो जाम मय-ए-होश-रुबा भी बदली

आजिज़ मातवी

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जाम तो जाम मय-ए-होश-रुबा भी बदली
साथ ही रिंदों के पीने की अदा भी बदली

फ़स्ल-ए-गुल बदली सबा बदली फ़ज़ा भी बदली
आप बदले तो गुलिस्ताँ की हवा भी बदली

टूट जाएगा यक़ीनन दिल-ए-मय-ख्वार अगर
निगह-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ज़रा भी बदली

बज़्म-ए-याराँ में सदा से मुझे पहचानता कौन
मेरे हालात जो बदले तो सदा भी बदली

आज तक उस ने तो वा'दा कोई ईफ़ा न किया
जाने क्या सोच के फिर शर्त-ए-वफ़ा भी बदली

होने लगता है कुछ एहसास शिकस्त-ए-तौबा
बादा-ख़ाने पे अगर छाई ज़रा भी बदली

वक़्त के साथ बदल जाती है हर शय 'आजिज़'
आप तो बदले मगर ख़ू-ए-जफ़ा भी बदली