जाम ला जाम कि आलाम से जी डरता है
असर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम से जी डरता है
लब पे अब आरिज़-ओ-गेसू के फ़साने क्या हों
फ़ित्ना-हा-ए-सहर-ओ-शाम से जी डरता है
तुझ को मैं ढूँढता फिरता हूँ दर-ओ-बाम से दूर
अब तजल्ली-ए-दर-ओ-बाम से जी डरता है
गुल खिलाए न कहीं फ़ित्ना-ए-दौराँ कुछ और
आज-कल दौर-ए-मय-ओ-जाम से जी डरता है
निगह-ए-मस्त के क़ुर्बान मिरी सम्त न देख
मौजा-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम से जी डरता है
छोड़ कर राह में बुत-ख़ाने गुज़र जाता हूँ
होश में जल्वा-ए-अस्नाम से जी डरता है
रात की ज़ुल्मतें बढ़ती ही चली जाती हैं
'अख़्तर' अपना तो सर-ए-शाम से जी डरता है
ग़ज़ल
जाम ला जाम कि आलाम से जी डरता है
अख़्तर अंसारी अकबराबादी