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जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ | शाही शायरी
jam Khaali hain mai-e-nab kahan se laun

ग़ज़ल

जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ

नवाब मोअज़्ज़म जाह शजीअ

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जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ
आप का दीदा-ए-पुर-आब कहाँ से लाऊँ

कह सकूँ उन की निगाहों का तबस्सुम जिस को
एक ऐसा दिल-ए-बे-ताब कहाँ से लाऊँ

इश्क़ ख़ुद अपनी जगह पर है मुकम्मल लेकिन
हुस्न का जौहर-ए-नायाब कहाँ से लाऊँ

सामना तुम से मोहब्बत में जो हो जाए कभी
इक नया आलम-ए-असबाब कहाँ से लाऊँ

का'बा-ओ-दैर की राहों से गुज़र जाता हूँ
महफ़िल-ए-नाज़ के आदाब कहाँ से लाऊँ

एक ही बार नशेमन पे गिरी है बिजली
बारहा गुलशन-ए-शादाब कहाँ से लाऊँ

जो कभी उन की तवज्जोह का नतीजा थी 'शजीअ'
फिर वही कैफ़ियत-ए-ख़्वाब कहाँ से लाऊँ